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जोो बसंंत नहींं आएगाा जोो बसंंत नहींं आएगाा
तोो मैंं बसंंत बन जााऊँँगाी, तोो मैंं उसंे भींलों ना पााऊँँ गीी,
फूू लोंों जैैसंी महकूं ंं गीी , तोु मैंकूंो अपनीे पासं बुलोंाकूंर
तितोतलोंी संी हड़ � बड़ा � ाऊँँगाी, बसंंत कूं े ति�स्संे सीुनाऊँँगाी -
चि�ति�योंों जैैसंी चहकूं ंं गीी , “फूू लोंों संे सीजोता थाा बसंंत
�
टहति�योंों सीी झू ू ल जोाऊँँगाी हींरे - हरे पत्तेे चमैं�त े ,
जोो बसंंत �हं आएगाा लहरातोे थेे पाेड़ � हर तोरफ
तोो मैंं बसंंत बन जााऊँँगाी । घनी जोड़ � ं फैै लती थीी, खि�संकातेे - खि�संकातेे”
देे खोो मैंं�े पहींनी है टहनीी जोब बसंंत कूंो “हींै” न बोलोंकार “थाा” बोल ंं गीी
अब फू ं लोंों सीी मुस्कााऊँँ गीी आँँ संू रोका न पाऊँंगाी,
ं
मृृतो आँँ खोंों मैंं आँसं ू हींोंगा े रु�न आवााजो � मं आगीे बढ़ूं � ं गीी
पर तिफूर भीी त ु म्ह ं हँ संाऊँँगाी �हते- काहतेे बातो भू ू लों जोाऊँगीी
ं
बसंंत कूंी खों ु शीी काा एहसंासं जैगााकार तिफूर बी� काहींं संे �ति�ता �हूँ गीी -
तोु म्हं बसंंत ति�खलोंाऊँँ गीी “�ेखोंो मैंं�े पहींनी है टहनीी
जोो बसंंत �हं आएगाा अब फू ं लोंों सीी मुस्कााऊँँ गीी”
तोो मैंं बसंंत बन जााऊँँगाी । पर तिफूर ध्याा� लोंगााकार �ुद �ो हींोश मैंं लोंाऊँँगाी
तोु मैंकूंो �ड़ा � �ी बाते संुनाकार तोु मैंकूंो हींोशी मृं लोंाऊँँगाी,
जोो बसंंत �हं आएगाा
तोो मैंं बसंंत बन जााऊँँगाी ।
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